________________
१४६ ] जैन सुबोध पाठमाला-भाग १
पन्द्रहवाँ बोल : 'सम्यक्त्व के पाठ प्राचार'
प्राचार : सम्यक्त्वी को जिन आचारों का पालन करना चाहिए,
उन्हे सम्यक्त्व के प्राचार' कहते है ।
१. निःशकित : सूक्ष्म 'तत्व' समझ में न आने पर जिनवचनो मे सन्देह न करे।
२ निःकांक्षित : कुतीथियो के तप-याडवर, पूजादि देखकर 'अन्य मत' की चाह न करे।
३. निविचिकित्सक · धर्म-क्रिया के फल में सन्देह न करे, त्यागी साधू-साच्चियों के शरीर-वस्त्रादि मलिन देखकर घृणा न करे।
४. अमूढ दृष्टि · कुतीथियो के तप, पाटवर, पूजादि देखकर जिन-मत से विचलित न हो। ,
५ उपवृहरण (उवबूह) : सम्यक्त्वियो की प्रशंसा और वैयावृत्य करके उनको बढावा दे, स्वय भी अपने सम्यक्त्व को
पुष्ट करे।
६. स्थिरीकरण : जिन-शासन से डिगते हुए पुरुषों को जिन-शामन मे स्थिर करे।
७. वात्सल्य : चतुर्विध सघ से वत्सलता (प्रेम) रक्खे ।
८ प्रभावना : बहुश्रुतादि ८ बोलो से जिन-गासन को प्रभावना करे।
~~-उत्तराध्ययन, अध्ययन २८ से ।