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उ० : चतुर्विंशतिस्तव का पाठ ।
प्र० इसे चतुर्विंशतिस्तव का पाठ क्यों कहते है ?
उ० : इससे चौबीस तीर्थकरों की स्तुति की जाती है, इसलिए ।
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प्र० : 'लोक का उद्योत करने वाले' का भाव क्या है ? उ० : विश्व का ज्ञान कराने वाले
जन सुवोध पाठमाला -भाग १
प्रo : यहाँ कीर्त्तन किसे कहा है ?
उ० मन से १- नाम स्मरण करने को श्रीर २. गुरण-स्मरण करने को ।
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प्र० - यहाँ वन्दन किसे कहा है ?
उ० : मुख से १. नाम-स्तुति करने को और २. गुरण- स्तुति करने को ।
प्रे० : यहाँ पूजन किसे कहा है ?
उ. पूज्य मानकर (स्मरणीय और स्तवनीय मानकर ) काया ( पंचांग नमाकर) से नमस्कार करना ।
प्र० : क्या तीर्थंकरो की फूलो से पूजा करना 'पूजन' नहीं
?
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कहलाता
उ० : नहीं। तीर्थंकरादि के सामने जाते हुए पहला अभिगमन है - सचित्त का त्याग | जब सचित्त को लेकर तीर्थंकरादि के सामने जाने का भी निषेध है, तव सचित्त फूलों से उनकी पूजा करना 'पूजन' कैसे कहला सकता है ? प्र० : कीर्त्तन तथा वन्दन से क्या लाभ होता है ?
जसे, गुणो के स्मरण तथा स्तुति से यह ज्ञान होता है कि कोनसे गुरणों वाला देव सच्चा देव हो सकता है ? तथा नामो के स्मरण तथा स्तुति से
उ० : १. ज्ञान बढता है |
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। यह ज्ञान होता है कि ऐसे गुणों वाले सच्चे देव कौन हुए ?