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(४४) उत्तर-ऐसा नहीं है, क्योंकि तिर्यनों में नारकियों से अधिक दुःख नहीं है।
फिर शका-जब नारकियों में अधिक दुःख है तो उन नारकियों में भी सम्यग्दृष्टि जीव नहीं हो सकेंगे ?
उत्तर-यह भी शंका ठीक नहीं है क्योंकि नारकियों में भी सम्यग्दर्शन होता है। ऐसा प्रतिपादन करनेवाला माघे सूत्र प्रमाण में पाया जाता है मादि।
इस उपयुक्त सूत्र को व्याख्या से श्री धवलाकार ने यह बहुत खुलासा कर दिया है कि तिर्यबों के अपर्याप्त शरीर में सम्यक. दर्शन क्यों हो सकता है उसका समाधान भो मागे को याख्या द्वारा यह कर दिया है कि जिस जीव ने सम्यग्दर्शन के प्रहण करने के पहले मिथ्याष्टि अवस्था में तिर्यच भायु और नरक भायु का बन्ध कर लिया। उस जीव की तिथंच शरीर में भी उत्पत्ति होने में कोई बाधा नहीं है लेख बढ़ जाने के भय से हम बहुत सावर्णन छोड़ते जाते हैं। इसी लिये भागे को व्याख्या हमने नहीं निखो है। जो चाहें वे उक्त पृष्ठ पर अवता से देख सकते हैं।
हम इस सब निरूपण से यह बताना चाहते हैं कि गुणस्थानों की सम्भावना एवं समा जीवों के द्रव्य शरीर से हो सम्बन्धित है। और द्रव्य शरीर वही लिया जायगा जिस कि सत्र में उल्लेखो। तिर्यच शरीर में अपार पास्या में