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(३६) मुपगतदेहानां तेषां कथं पुनमरण मिति चेन्न देहविकारस्याssयुर्विबिस्यनिमित्तत्वात। अन्यथा वालावस्थातः प्राप्त यौवनस्यापि मरणप्रससाता
(पृष्ठ १६०-१६१ धवल सिद्धांत) अर्थ-जिन नारकियों की छह पर्याप्ति पूर्ण हो जाती हैं बेही नारकी इन दूसरे और तीसरे दो गुणस्थानों के साथ पारणमन करते हैं। अपर्याप्त भवस्था में नहीं। 'उपयुक्त दो गुणस्थान नारकियों को पर्याप्त अवस्था में क्यों नहीं होते ? इस शहर के उत्तर में प्राचार्य कहते हैं कि उनकी अपर्याप्त प्रास्था में उक्त दो गुणस्थानों के निमित्त भूत परिणाम नहीं हो पाते हैं। फिर शङ्का होती है कि वसं परिणाम भपयांत भवस्था में उनसे क्यों नहीं हो पाते हैं ?
उत्तर-वस्तु स्वभाव ही ऐसा। फिर शङ्का होती है कि नारकी भग्नि के सम्बन्ध से भस्म हो जाते हैं और उसी भस्म में से अपन हो जाते हैं सी अवस्था में पर्याप्त अवस्था में भी उनके एक दो गुणस्थान हो सकते इसमें क्या विरोधहै अथान बेपन मादि से नष्ट एवं अग्नि में जलाने से उनका शरीर नष्ट हो जाता। फिर में उन्हीं भस्म मादि अवयवों में उत्सम हो जाते है इसलिये उनकी अपर्याप्त अवस्था में एक दो गुणस्थान हो सकते हैं इसमें कोई बाधा प्रतीत नहीं होती फिर जो यह पा सत्र में कही गई है कि दुसरे तीसरे गुणस्थान में नारी नियमावे