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आज जिन जातियों में उक्त प्रथायें प्रचलित हैं, उनमें ऐसी कोई भी जाति नहीं है, जो धार्मिक एवं आर्थिकदृष्टि से बढ़ी चढ़ी हो, प्रत्युत वे जातियां अध: पतन की ओर जा रही हैं ।
इसी प्रकार समय २ पर आपने जो अपने विचार समाज के सामने रक्खे हैं, वे सभी शस्त्रीय एवं अकाट्य युक्तियाँ से युक्त रहे हैं ।
आपने पत्र बाध्यायी राजवार्तिक तथा पुरुषार्थ सिदुष्युपाय इन सैद्धान्तिक प्रन्थों की विस्तृत एवं गम्भीर टीकायें की हैं। जो कि विदुरसमाज में अतोत्र गौरव के साथ मान्य समझी गई हैं। देहली में चार्य-समाजियों के साथ लगातार छह दिन तक शास्त्रार्थ करके आपने महत्वपूर्ण विजय प्राप्त की है। उसी के सम्मान स्वरूप आपको जैन समाज ने "वादोभ केसरी" पश्वी से विभूषित किया है। आज से करीब २० वर्ष पहिले आपने श्री गो० दि० जैन सिद्धांत विद्यालय मोरेनाको उस हालत में संभाला था, जब कि इस विद्यालय का कोई धनी धोरी हो नहीं दीखता था आपसी दलबन्दी के कारण विद्यालय के कार्यकर्ता अध्यापक वर्ग विद्यालय से चले गये थे ।
उच्च पदाधिकारी योग्य संचालक के नहीं मिलने के कारण विद्यालय के चलाने में अतीव कठिनाई महसूस कर रहे थे उस कठिन समय में आपने आकर विद्यालय की बागडोर अपने हाथ में की थी, और विद्यालय को आर्थिक सकुट से दूर कर विद्यालय के ध्येयके अनुकूल ही अभी तक बराबर विद्यालयको भाप चला