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बाई, साथ ही मां ने यह बात बड़े पाश्वयं के माथ कहो कि 'जोत्रकाण्ड और कर्मकाण्डसमचा गोम्मटमार व्यवेदक निरूपण से भरा हुआ है. और पटवण्डागम-सिद्धांत शास्र में कहीं भी इम्यवेतका बगान नहीं है ऐमा ये समझदार विद्वान भी कहते हैं। यह बहुत ही पाश्चर्य की बात है। प्रस्तु।
अनेक गोर संस्कृत शास्त्रों का अनुवाद करने के कारण श्रद्धेय शाधी जी का जसा पसागरण एवं परिपक्व बढा चढा शासीय अनुभव है और जैसे वे समाज प्रतिष्ठित उद्भट त्रिवान हैं. उसी प्रकार उन्हें पागम ए धमे रक्षण को भी नमरिक चिना रहती है। प्रोफेसर माहेब क मन्तव्यों सता व 3 कतिकी हानि समझते हैं परनु सिद्धांत सूत्र में "सम्जद" पद जुइ जान एवं उसके ताम्रपत्र में स्थायी हो जाने से वे बागम में परीत्य पाने सं समाज भर का पहिन समझते हैं, इसका उन्हें अधिक खंद है। इस लिये जिस प्रकार "दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण प्रथम भाग,, नामक ट्रैक्ट के लिखने के लिये हमें श्रादेश दिया था। इसी भान्ति यह ग्रंथ भी उन्हीं के आदेश का परिणाम है। अन्यथा हम दोनों में से एक भी ट्रैक्ट के लिखने में सफल नहीं हो पाते, कारण कि अष्ट महस्री, प्रमेय मत मार्तण्ड राजवातिकालंकार पचाध्यायी इन ग्रन्थों के अध्यापन तथा संस्था एव समाज सम्बन्धी दूसरे २ अनेक कार्या के प्राधिक्य से हमें थोड़ा भी अवकाश नहीं है। फिर भी भाई साहब की प्रेरणा से हमने दिन में तो नियत कार्य किये हैं, रात्रि में दो दो बजे से