________________
उनके दिये गये निर्णय को शिरोधार्य करें। काम छोड़ने की बात छोड़ देवें । यदि पं० बच जी हमारे समयोपित एवं वस्त-पथ प्रदर्शक शब्दों पर विचार करेंगे तो अच्छी बात है क्योंकि उनकी बात की रक्षा से प्रागम की रक्षा बहुत बड़ो एवं दिगम्बरत्व की मल भिति है । उसके मामने वे अपनी बात की रक्षा चाहें यह न वो विवेक है और न ऐसा हो सकता है।
मागम में बहुमत भी मान्य नहीं हो सकता है।
कतिपय व्यक्तियों के मतों को प्रसिद्ध करना एवं किसी सामुदायिक शक्ति के मत को चाहना, ये सब बातें भी निःसार हैं। भागम के विषय में बहुमत का कोई मूल्य नहीं है। इसमें तो प्राचार्यवचन ही मान्य होते हैं । अत: व्यान्न समुदाय का बहुमत संसद पद के बारे में बताना व्यर्थ है। जैसे यह बात व्यर्थ है इसी प्रकार यह बात भी व्यर्थ एवं मारहीन है कि प्रा० महाराज को इस संजर पद के झगड़े में नहीं पड़ना चाहिये । ऐसे झगड़े तो गृहस्थों के लिये ही उपयुक्त एवं अधिकृत बात है। साधुनों को इन विवाद की बातों से क्या प्रयोजन है ? फिर पण्डितों का मत भव है। बेहो भापस में संजद पर रखने, नहीं रखने का निर्णय करें, या भा० दि० जैन महा सभा इस मामले को निबट
सपसी है? भादि जो बातें सुनी जाती है वे सब भी व्यर्थ एवं पवारण सरीखी है क्योंकि यह बस्तु स्वरूप से विपरीत समाह है। निय देने के बावार्य महाराज हो अधिकारी है।