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है कि 'द्रव्यतो भावसश्व । अर्थात कर्मभूमि के मनुष्य दिय बोंको छोड़ कर बाकी के जोड़ों के वेद भागवेद एक ही है द्रव्यवेद के जिये तो टोका प्रमाण है परन्तु केवल भाववेद के लिये भात्रबादियों के पास क्या प्रमाण है ? और भी
साहिय ससहसमेकं वारं को सूयमेक मेक्कंच | जोयण सदस्सीह पम्मे वियते महामं ॥ (गो ०जी० ना० ६५ पृ. २१७ टो०)
कमल, हीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रिय महामत्स्य इन जीवों के शरीर को अवगाहना से कुछ अधिक एक हजार योजन की अवगाहना कमल की, द्वीद्रियशंख की बारह योजन, चींटियों की श्रीन्द्रियों में तीन कोस की, चौन्द्रिय में भ्रमर की एक योजन परियों में महामत्स्य की अवगाहना एक हजार योजन लम्बी
। इसी प्रकार मांगे अन्य जीवों के शरीर को अवगाहना बसाई गई है। यह सब द्रव्य शरीर का ही मिरूपण है। भाव का कुछ नहीं है। चोर भी
पोतजरायुजचण्ड अजीवाणं गम्भदेवणिश्याणम् ।
उपपाद सेवाएं समुच्छ्रयायं तु विषिष्ठम् ॥ (गो० जी० गा० ६४ )
इस गाथा में स्वेदज, जरायुज अण्डज, देवनारकी, और बाकी समस्त संसारी जीवों का गर्भ, उपपाद और सम्मृष्टन जन्म बताया गया है। यह सब द्रव्यशरीर का ही वर्णन है। भाव का नहीं है। इसी प्रकार