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या जाता है।
इसी प्रकार नामकर्म के भों में भी द्रव्यों स उल्लेख व्यवेद के नाम से नहीं है परनामम्मे के पांगोशंग, निर्माण, शरीर इनके विशिष्ट भदों और उनमय में होने बाली नोर्माण वगंणामों से होने वाली शरीर रचना में एम. बेर गर्षित होते हैं। इसलिये द्रव्यों का स्वतन्त्र उल्लेख मार्गमामा के क्रम विधान में नहीं माने से नहीं किया है। पानु गति, इंद्रिय, काय और योग मार्गणामों के बनगत व्यवेद पा जाता है।
इन पटसएसगम और गोम्मटसार शाखों में जो गुणस्थानों का समाय किया गया है वह गति मादि मागणामों के द्वारा जीवों में द्रव्य शरीरों में ही किया गया है। और द्रव्य शरीर द्रव्य की पुरुषों के रूप में पाया जाता। पत: द्रव्यवेद का प्राण अवश्यंभावी स्वत:हो जाता है।
यदि द्रव्यदेदों अथवा द्रव्यशोरों का सत्यभर विक्षित नहीं होतो फिर गुणस्थानों की नियत मर्यादा अमुक गति में, पमुक योग और अमुक पनि अपर्याति में इसने गुणस्थान होते हैं अथवा अमुक गुणस्थान अमुक गति में, अमुक योग में, अमुक अवस्था (पर्याप्त अपांत) में नहीं होते हैं यह बात से fea हो सकती है। गुणस्थानों का समाय इव्य शरीरों को लेकर गत्वाविवाधार से कहा गया है इसजिये द्रव्यदोंबप्राय विना न मोड किये गति और शरीर सम्बन्धी