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इस गाथा की टीका में संस्कृत टीका के आधार पर-६० टोडरमल जी लिखते हैं कि
बहुरि सर्वार्थ सिद्धि विखें अहमिद्र स असंयत हो हैं ते द्रव्यत्री मनुषिणी तिन ते तिगुण वा कोई प्राचार्य के मत कर सात गुण हैं। पटखण्डागम और गोम्मटसार दोनों में द्रव्य कथन है और एक रूप है।
-गोम्मटसार मी द्रव्यवेद का विधायक हैइसी प्रकार गोम्मटसार में गति आदि प्रत्येक मार्गणा के कथन के अंत में जो उस मार्गणा वाले जीवों की संख्या बताई है वह द्रव्यवेद अथवा जीवों के द्रव्य शरीर को अपेक्षा से ही बताई है। जिन्हें इस हमारे कथन में सन्देह हो वे गोम्मटसार जीवकांड निकालकर देख लेवें । लेख बढ़ जाने के भय से यहां प्रमाण नहीं दिये जाते हैं।
इसी प्रकार षटखण्डागम के द्रव्य प्रमाणानुगम में द्रध्यजीवों की संख्या बताई है। भाववेद वादी विद्वान अपने लेखों में एक मत होकर यह बात कह रहे हैं कि षटखण्डागम सिद्धांत शासन
और गोम्मटसार दोनों में द्रव्यवेद का कथन नहीं है भारवेद का ही कथन उन दोनों में है। परन्तु यह बात प्रत्यक्ष बाधित है। हम उपर स्पष्ट कर चुके हैं, और भी देखिये
इंदियाणुवादेण एइंदिया वादरा सुहुमा पजत्ता भपजता दश्च पमाणेण केवडिया भणंता।
(सूत्र ७४ पृ० १५३)