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लिखना चाहते थे, सामग्री का संग्रह भी हमने किया था परन्तु उसका उपयोग न देखकर उसमें शक्ति व्यय करना फिर व्यर्थ
समझा ।
हमारी यह इच्छा अवश्य थी कि इन मन्त्रोंका जीर्णोद्धार ह और उनकी हस्तलिखियां मुख्य मुख्य स्थानों में सुरक्षिन रक्खी जांय | परन्तु 'वह मुद्रित कराये जाकर बनले बिक्री को जांय' हम इसके सबंधा विरोधी हैं । जब तक परमागन-निवांत शाख ताडपत्रों में लिखे हुये मूडनिद्रा में विराजमान थे, तब तक उनका आदर, विनय भक्ति और महत्व तथा उनके दर्शन को अभिलाषा समाज के प्रत्येक व्यक्ति में समधिक पाई जाती थी, परन्तु जब से उनका मुद्रण होकर उनकी बिको हुई है तब से उनका चादर विनय भक्ति और महत्व उतना नहीं रहा है, प्रत्युत प्रवाशय के विपरीत साधनाओं का साधन वह परमागम बना लिया गया है, इसलिये आज भलेही उसका प्रचार हुआ है परन्तु लाभ और दिल के स्थान में हानि हो अभी तक अधिक प्रतीत हुई है । जैसा कि वर्तमान विवाद और आन्दालन से प्रसिद्ध है। हमारे तीन ट्रक्ट
सिद्धांतशास्त्र में सिद्धांत विपरीत समावेश देख कर हमें ट्रैक्ट लिखने पढ़े हैं। एक तो वह जिसका उल्लेख ऊपर दिया जा चुका है। दूसरा वह जो "दिगम्बर जैन सिद्धांत दर्पण (प्रथमभाग )" के नाम से बम्बई की दिगम्बर जैन पंचायत द्वारा छपा कर प्रसिद्ध किया गया है। जिसमें द्रव्यस्रीमुक्ति, सबस्रमुक्ति