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कथं पुनस्तामु चतुदश गुणस्थानानीतिचेन, भावत्रीविशिष्ट मनुष्यगतो तत्मत्वाऽविरोधान ।
अर्थ-शका - उन खियों में फिर चौदह गुणस्थान कैसे बताये गये हैं?
उत्तर-यह शंका भी ठीक नहीं है, भावस्त्रो विशिष्ट मनुष्यगति में ननक सत्व का विरोध ।
विशेप-शंकाकार ने यह शंका की है कि जब मार (पाचार्य) खियों को वस महित होने से द्रव्यसंयम और भावसंयम दोनों का उनमें प्रभाव बताते हो तब उनके इस शास्त्र में जहां पर चौदह गुगास्थान बताये गये हैं वे कैस बनेंग? उत्तर में प्राचाय कहते है कि जहां पर स्त्रियों के चौदह गुणस्थान बताये गये हैं। वह भाव स्त्री विशिष्ट मनुष्यगति की अपेक्षा से बताये गये हैं। भावली सहित मनुष्यात में चौदह गुणस्थान होने में कोई विरोध नहीं पा सकता है। ___ यहां पर यह समझ लेना चाहिये कि जैसे ऊपर की शंका और समाधान में दो बार "मम्मादेव भाषांन" इसी पाप से अयान 'इसी सूत्र सं' ऐसा उल्लेख किया गया है वैसा उल्लेख इस चौदह गुणस्थान बताने वाली शंका में भोर समाधान में नहीं किया गया है। यदि सूत्र में संजद पद होता तो शकाकार अवश्य कहता कि संजद पद रहने से इसी ६३वे सूत्र में चौदह गुणस्थान फिर कैसे बताये गये हैं। परन्तु ऐसी शंका नहीं की गई है,