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श्री सिद्धचक्र विधान
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सो द्वादशांग वाणी विशाल,
ता सुनत पढ़त आनन्द विशाल। यातें जग में तीरथ सुधाम,
कहिलायो है सत्यार्थ नाम ॥८॥ सो तुमहीसो हैं शोभनीक,
नातर जल सम जड़ वहै सु ठीक। निजपर आतम हित आत्म भूत,
जबसे है जब उतपत्ति सूत ॥९॥ ज्यों महाशीत हो हिम प्रवाह, ... है मेटन समरथ अग्नि दाह । - त्यों आप महामंगल स्वरूप,
.. पर विधन विनाशन सहज रूप॥१०॥ हूँ सन्त दीन तुम भक्ति लीन,
। सो निश्चय पावै पद प्रवीण। तातें मन-वच-तन भाव धार, ___ तुम सिद्ध नमूं मम नमस्कार ॥११॥
दोहा । . जो तुम ध्यावें भावसों, ते पावें निज भाव।
अग्नि पाक संयोग करि, शुद्ध सुवर्ण उपाय॥ ॐ ह्रीं अष्टाविंशत्यधिकशतदलोपरिस्थितसिद्धेभ्यो नमः अयं । "ॐ ह्रीं अर्ह असि आ उ सा नमः" मंत्र का १०८ बार जाप देना चाहिये।
इत्याशीर्वादः। इति पञ्चमी पूजा सम्पूर्णम्।