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श्री सिद्धचक्र विधान
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कर्माष्ट बिन त्रैलोक्य पूज्य अदूज शिव कमलापती, मुनि ध्येय सेय अभेय चहुँगूण, गेह धो हम शुभमती॥ __ॐ ह्रीं अर्ह अष्टाविंशति अधिकशतगुणयुक्तसिद्धेभ्यो नमः पूर्णाधैं निर्वपामीति स्वाहा। एकसौ अट्ठाईस गुण सहित अर्घ
त्रोटक छन्द निरबाधसुतत्त्वस्वरूपलखो, इकलेश विशेष नशेषरखो। अतिशुद्धसुभाविक छायक है, नमूंदर्श महासुखदायक है। . . ॐ ह्रीं अहँ सम्यग्दर्शनाय नमः अर्घ्यं ॥१॥ . निरमोह अकोह अबाधित हो, परभावथकीन बिराधित हो। निरसंस चराचर जानत हैं, हम सिद्ध सु ज्ञान प्रमानत है।
. ॐ ह्रीं अहँ सम्यग्ज्ञानाय नमः अर्घ्यं ॥२॥ सबराग विरोध निवारन है, निज भाव थकी निज धारन है। पर में न कभूनिज भाव वहै, अति सम्यक्चारित्रनाम यहै ॥
ॐ ह्रीं अहँ सम्यकचारित्राय नमः अर्घ्यं ॥३॥ उतपाद विनाश न बाध धरै, परनाम सुभाव नहीं निसरैं। तुम धारत हो यह धर्म महा, हम पूजत हैं पद शीश यहां॥
ॐ ह्रीं अहँ अस्तित्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥४॥ निज भावन” व्यतिरिक्त न हो, प्रणमों गुणरूपगुणातम हो। यह वस्तु सुभाव सदा विलसो, हम पूजत हैं सब पाप नसो॥
ॐ ह्रीं अहँ वस्तुत्वधर्माय नमः अर्घ्यं ॥५॥ .