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श्री सिद्धचक्र विधान
नीलाञ्जना सुरी नभ में ज्यों, ऋषभ भक्ति कर नृत्य कियो। सोतुमसन्मुखधूपउडावत,तिसछविकोनहींभावलियोलो ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय . श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ सेव रंगीले अनार रसीले, केला की ले डाल फली। डाली हूंनृपमाली हू, नातर प्रासुकता कीरीति भली।लोका. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ एकसौ एक अधिक सोहत वसु, जातिअर्घ करि चरण नमूं। आनन्दआरतिआरततजिकैं, परमारथहितकुमतिबमूंलोका. ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्टिने एकसौ अट्ठाईसगुणसंयुक्ताय श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वाह अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ्य निर्वपामीति स्वाहा ॥९॥
गीता छन्द निर्मल सलिल शुभवास चन्दन धवल अक्षत युत अनी, शुभ पुष्प मधुकर नित रमें चरू प्रचूर स्वाद सुविधि घनी। वर दीपमाल उजाल धूपाइन रसायन फल भले, करि अर्घ सिद्ध समूह पूजत कर्मदल सब दलमले॥ ते कर्मवर्त न शाय युगपत ज्ञान निर्मल रूप हैं, दुःख जन्म टाल अपार गुण सूक्षम स्वरूप अनूप हैं।