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श्री सिद्धचक्र विधान
वीतराग परधान, ध्यान करें तिनको सदा। सोई ध्येय महान, नमो सिद्ध हम अघ हरो॥५०॥
ॐ ह्रीं ध्येयसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५०॥ लोक शिखर शिवथान, अचल विराजत सिद्ध जिन। लोकवास सर्वान, भये सिद्ध प्रणमूं सदा ॥५१॥
ॐ ह्रीं सव्वसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५१॥ . औरन करत कल्याण, आप सर्व कल्याणमय। सोई सिद्ध महान, मंगल हेतु नमूं सदा ॥५२॥
ॐ ह्रीं स्वस्तिसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५२॥ तीन लोक के पूज, सर्वोत्तम सुखदाय हैं। जिन सम और न दूज, तिनपद पूजों भाव युत॥५३॥
। ॐ ह्रीं अहँ सिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५३॥ .. लोकोत्तम परधान, तिन पद पूजत हैं सदा। तारौं सिद्ध महान, सर्व-पूज्यके पूज्य हो ॥५४॥
ॐ ह्रीं अहँ सिद्धसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५४॥ परम धरम निज साध, परमातम पद पाइयो। सोई धर्म अबाध, पूजत पद हम दीजिये ॥५५॥
ॐ ह्रीं परमात्मसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५५॥ सर्व ऋद्धि नव निद्ध, सिद्ध भये नहिं सिद्ध हों। निजपद साधत सिद्ध, होत सही तिनको नमो॥५६॥
ॐ ह्रीं परमसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥५६॥