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श्री सिद्धचक्र विधान
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धूलि सार छवि हरण विवर्जित, फूलमाल लाई। काम शूल निरमूल करणकों,पूजहुँ तुम पाई॥ सिद्ध.॥ ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ भूख गार अक्षीण लगी हूँ ,पूरित है नाई। चारुमाल तुम पद पूजत हों, पूरण शिवराई ॥ सिद्ध.॥
ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहेव अवगहण अगुरुलघुअव्वावाह क्षुधारोगविनाशनाय नैवद्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ दीपनिप्रति तुम यदनित यूजत, शिव मारगदरशाई। घोर अन्ध संसार हरण की, भली सूझ पाई॥ सिद्ध.॥ ___ॐ ह्रीं. णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा॥६॥ कृष्णागरु कर्पूर पूर घट, अगनि से प्रजलाई। उडै धूम यह, उडे किधों जर करमन की छाई॥ सिद्ध.॥ ___ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम त्तहे व अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ मधुर मनोग सुप्रासुक फलसों, पूजों शिवराई। यथायोगविधिफलकोदे गुण, फलकीअधिकाई॥सिद्ध.॥ ___ ॐ ह्रीं णमो सिद्धाणं श्री सिद्धपरमेष्ठिने चौसठिगुण सहित श्री समत्तणाणदंसणवीर्य सुहम तहेव अवग्गहण अगुरुलघुअव्वावाह मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥