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श्री सिद्धचक्र विधान
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वरणादिक भेद विडारन हो, परिणाम कषाय निवारन हो। मन इन्द्रियज्ञानन पावत हो, अतिशुद्ध निरूपमज्योतिमही॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धज्योतिर्जिनाय नमः अर्घ्यं ॥२९॥ जन्मादिक व्याधिन फेरिधरो, मरणादिक आपद नाहिं वरो। निर्वाण महान विशुद्ध अहो, जिन शासन में परसिद्ध कहो॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धनिर्वाणाय नमः अर्घ्यं ॥३०॥ करिअन्त नगर्भलियो फिरकें, जनमे शिववासजनमधरके। जिनको फिर गर्भ न हो कबहूँ, शिवराज कहाय नमूं अबहूँ॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धसंदर्भगर्भाय नमः अयं ॥३१॥ जगजीवन पाप नशायक हो, तुम आप महा सुखनायक हो। तुम मंगल मूरति शांति सही, सब पाप न तुम पूजत ही॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धशान्ताय नमः अर्घ्यं ॥३२॥
जयमाला - दोहा पञ्च परमपद ईश हैं, पञ्चमगति जगशीश। जगत प्रपञ्च रहित बसे, नमूं सिद्ध जग ईश॥३३॥ परम ब्रह्मा परमातमा,परम ज्योति शिवथान। परमातम पद पाईयो, नमों सिद्ध भगवान ॥१॥
छन्द - कामिनी मोहन, मात्रा २० जन्म मरण कष्ट को टारि अमरा भये,
जरादि रोग व्याधि परिहार अजरा भये। जय द्विविध कर्ममल जार अमला भये . जय दुविधि टार संसार अनला भये॥