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श्री सिद्धचक्र विधान
पद्धड़ी छन्द निजसिद्ध अनन्त चतुष्टय पाय, निजशुद्ध चेतना पुञ्जकाय। निजशुद्ध सबै पायो संयोग, तुम सिद्धराज स्वशुद्ध जोग॥
___ ॐ ह्रीं अहँ शुद्धयोगाय नमः अर्घ्यं ॥९॥ एकेन्द्रिय आदिक जातभेद, हीनांधिक नाम प्रकृति छेद। सम्पूरण लब्धि विशुद्ध जात हम, पूजैं हैं पद जोर हाथ॥ __ॐ ह्रीं अहँ शुद्धजाताय नमः अर्घ्यं ॥१०॥
दोहा महातेज आनन्दधन, महातेज परताप। नमों सिद्ध निजगुण सहित, दिपै अनूपम आप॥११॥ ___ॐ ह्रीं अहँ शुद्धतपसे नमः अर्घ्यं ॥११॥
पद्धड़ी छन्द वर्णादिक कोअधिकार नाहिं, संस्थान आदि आकार नाहिं। अति तेजपिण्डचेतनअखण्ड, नमूंशुद्धमर्तिक कर्मखण्ड॥
. ॐ ह्रीं अहँ शुद्धमूर्तये नमः अर्घ्यं ॥१२॥ वाहिज पदार्थ को इष्ट मान, महिं रमत ममत तासों जु ठान। निजअनुभवरसमें सदालीन, तुमशुद्धसुखीहमनमनकीन॥ ॐ ह्रीं अहँ शुद्धसुखाय नमः अर्घ्यं ॥१३॥
दोहा . धर्म अर्थ अरु काम बिन, अन्तिम पौरुष साध। भये शुद्ध पुरुषारथी, नमूं सिद्ध निरबाध ॥१४॥
ॐ ह्रीं अहँ शुद्धपौरुषाय नमः अर्घ्यं ॥१४॥