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श्री सिद्धचक्र विधान
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किरीट संस्फुर्यदसौ मयापि,
संस्थाप्य पूज्योहि विधानशान्त्यै ॥ ॐ ह्रीं त्रिकोणे सामान्यकेवलीलकुण्डे दक्षिणाग्नये अयं निर्वपामीति स्वाहा। इसके पश्चात् निम्नलिखित मंत्रों की आहुति देनी चाहिये।
. पीठिका मन्त्र - ॐ सत्यजाताय नमः॥१॥ ॐ अर्हज्जाताय नमः॥२॥ ॐ परमजाताय नमः॥३॥ ॐ अनुपमजाताय नमः॥४॥ ॐ स्वप्रधानाय नमः॥५॥ ॐ अचलाय नमः॥६॥ ॐ अक्षयाय नमः॥७॥ ॐ अव्याबधाय नमः॥८॥ ॐ अनन्तज्ञानाय नमः॥९॥ ॐ अनन्तदर्शनाय नमः ॥१०॥ ॐ अनन्तवीर्याय नमः॥११॥ ॐ अनन्तसुखाय नमः॥१२॥ ॐ नीरजसे नमः॥१३॥ ॐ निर्मलाय नमः॥१४॥ ॐ अछेद्याय नमः॥१५॥ ॐ अभेद्याय नमः॥१६॥ ॐ अजराय नमः ॥१७॥ ॐ अमराय नमः॥१८॥ ॐ अप्रमेयाय नमः॥१९॥ ॐ अगर्भवासाय नमः॥२०॥ ॐ अक्षोभाय नमः॥२१॥ ॐ अविलीनाय नमः॥२२॥ ॐ परमधनाय नमः॥२३॥ ॐ परमकाष्ठायोगरूपाय नमः॥२४॥ ॐ लोकाग्रवासिने नमो नमः॥२५॥ ॐ परमसिद्धेभ्यो नमो नमः॥२६॥ ॐ अर्हत्लिद्धेभ्यो नमो नमः॥२७॥ ॐ केवलसिद्धेभ्यो नमो नमः॥२८॥ ॐ अन्तकृत्सिद्धेभ्यो नमो नमः॥२९॥ ॐ परम्परासिद्धेभ्यो नमो नमः॥३०॥ ॐ अनादिपरम्परासिद्धेभ्यो नमो नमः॥३१॥ ॐ अनाद्यनुपमसिद्धेभ्यो नमो नमः॥३२॥ ॐ सम्यग्दृष्टे आसन्नभव्यनिर्वाणपूजार्ह अग्नीदाय स्वाहा ॥३३॥
सेवाफलं षट्परमस्थ नं भवतु, अपमृत्युविनाशनं भवतु, समाधिमरणं भवतु स्वाहा।
• जाति मन्त्र . ॐ सत्यजन्मनः शरणं प्रपद्ये ॥१॥ ॐ अर्हज्जन्मः शरणं प्रपद्ये ॥२॥ ॐ अर्हन्मातुः शरणं प्रपद्ये ॥३॥ ॐ अर्हत्सुतस्य शरणं प्रपद्ये ॥४॥ ॐ