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श्री सिद्धचक्र विधान
फिर डाभ दूब का पूबा जल में भिगो कर पृथ्वी पर छिड़के, तब यह मंत्र पढ़े ____ॐ ह्रीं मेघकुमारायधरांप्रक्षालयप्रक्षालयं अंहं तं झं झं यं क्षः फट् स्वाहा।
फिर यन्त्र का प्रक्षालन करे, तब यह मंत्र पढ़े-- ____ॐ ह्रीं भूभुर्वः स्वरिह एतद्विनौघवारकं यन्त्रमहं परिषिंचयामि स्वाहा।
फिर यन्त्र की पूजा करे। इसके बाद अग्निकुण्ड में साथिये बनायें या ॐ लिखे। पीछे कुण्ड में कपूर और डाभ दूब के पूले से अग्नि स्थापन करे, तब यह मंत्र पढ़े-- ॐ ॐ ॐ ॐ रं रं रं रं अग्नि संस्थापयामि स्वाहा। फिर कुण्डों में एक-एक अर्घ दे। प्रथम चतुष्कोण की पूजा। श्री तीर्थनापरिनिवृतिपूज्यकाले,
- आगत्य वह्निसुरपा मुकुटोल्लसद्गिः। वह्निव्रजैर्जिनपदेऽहमुदारभक्त्या,
देहु तदग्निमहर्चयितुं दधामि ॥ ॐ ह्रीं प्रथमे चतुरस्त्र तीर्थङ्करकुण्डे गार्हपत्याग्नयेधैं निर्वपामीति स्वाहा। गणाधिपानां शिवयातिकाऽले,
ग्नीन्द्रोत्तमांगस्तफुरदग्निरेषः। संस्थाप्य पूज्यः स मयाह्वनीयो,
विधानशांतौ विधिनाहु ताशः। ॐ ह्रीं द्वितीये वृते गणधरकुण्डे आग्नीयाग्नये निर्वपामीति स्वाहा। श्री दक्षिणाग्निः परकेवलिस्व
शरीरनिर्वाणनुताग्निदेव-।