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श्री सिद्धचक्र विधान
निज आतम में स्वस्थ हैं, स्वैपद योग रमाय। निर्भय तुम निरइच्छु हो, नमूं जोर कर पाय॥ ____ ॐ ह्रीं अहँ स्वस्थयोगरतजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९०४॥ महादेव गिरिराज पर, जन्म समै जिन सूर। . योगकिरण विकसात हो, शोक तिमिरकर दूर॥ ____ ॐ ह्रीं अहँ गिरिसंयोगजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९०५॥ सूक्ष्म निज परदेश तन, सूक्ष्म किया परिणाम। चितवत मन नहिं वच चलै, राजत हो शिवधाम॥
ॐ ह्रीं अहँ सूक्ष्मीकृतवपुःक्रियाय नमः अर्घ्यं ॥९०६॥ . सूक्ष्म तत्व परकाश हैं, शुभ प्रिय वचनन द्वार। भविजन को आनंद करि, तीन जगत गुरु सार॥ ___ ॐ ह्रीं अर्ह सूक्ष्मवामितयोगाय नमः अर्घ्यं ॥९०७॥ कर्म रहित शुद्धात्मा, निश्चल किया रहात। स्वप्रदेशमय थिर सदा, कृतकृत्य सुखपात ॥ .. ॐ ह्रीं अहँ निष्कर्मशुद्धात्मजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९०८ ॥ विद्यमान प्रत्यक्ष है, चेतनराय प्रकाश। कर्म कालिमासों रहित, पूजत हो अघ नाश॥ ___ ॐ ह्रीं अहं भूतामिव्यक्तचेतनाय नमः अर्घ्यं ॥९०९॥ गृहस्थाचरण सुभेद करि, धर्मरूप रसराश। एक तुम्हीं हो धर्म करि, पायो शिवपुर वास॥
ॐ ह्रीं अहँ धर्मरासजिनाय नमः अर्घ्यं ॥९१०॥ सूर्य प्रकाशन मोहतम, हरता हो शुभ पन्थ। पाप किया बिन राजते, महायती निरग्रन्थ॥
ॐ ह्रीं अहँ परमहंसाय नमः अर्घ्यं ॥९११ ॥