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श्री सिद्धचक्र विधान
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प्रतिपालक जगदीश हैं, सर्वनाम परमान। अधिक शिरोमणि लोक गुरु, पूजत नित कल्याण॥
ॐ ह्रीं अहँ पुराणपुरुषाय नमः अर्घ्यं ॥६७४॥ धर्म सहायक हो प्रभू, धर्म मार्ग की लीक। शुभ मर्यादा बंध प्रति, करण चलावन ठीक॥
ॐ ह्रीं अहँ धर्मसारथये नमः अर्घ्यं ॥६७५ ॥ शिव मारग दिखलाय कर, भविजन कियो उद्धार। धर्म सुयश विस्तार करि, बतलायो शुभसार॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ शिवकीर्तिजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६७६ ॥
मोह अन्ध हन सूर्य हो, जगदीश्वर शिवनाथ। - मोक्षमार्ग पर परकाश कर, नमूं जोर जुग हाथ।
ॐ ह्रीं अर्ह मोहांधकारविनाशकजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६७७॥ मन इन्द्री व्यापार बिन, भाव रूप विध्वंस। ज्ञान अतिन्द्रिय धरत हो, नमत नशै अघ वंश। ___ॐ ह्रीं अहँ अतीन्द्रियज्ञानरूपजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६७८॥ पर उपदेश परोक्ष बिन, साक्षात परतक्ष । जानत लोकालोक सब, धरै ज्ञान अलक्ष॥
ॐ ह्रीं अहँ केवलज्ञानजिनाय नमः अर्घ्यं ॥६७९ ॥ व्यापक हो तिहुँलोक में, ज्ञान ज्योति सब ठौर। तुमको पूजत भावसों, पाऊँ भवदधि और॥
ॐ ह्रीं अहँ विश्वभूतये नमः अर्घ्यं ॥६८० ॥ इन्द्रादिक कर पूज्य हो, मुनिजन ध्यान धराय। तीन लोक नायक प्रभु, हम पर होत सहाय॥
ॐ ह्रीं अहँ विश्वनायकाय नमः अर्घ्यं ॥६८१॥
तुमको पूजत अहं विश्वभूतये मुनिजन