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श्री सिद्धचक्र विधान
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विश्व नाम संसार है, जन्म-मरण सो होय। सोई व्याधि बिनासियो, जनूं जोर कर दोय॥
ॐ ह्रीं अहं विश्वजिते नमः अयं ॥४५० ॥ विषय कषाय निवार के, जग सम्बन्ध विनाश। जनम-मरण बिन ध्रुव लसैं, नमूं ज्ञान परकाश॥
ॐ ह्रीं अहं विश्वजैत्रे नमः अध्यं ॥४५१॥ विश्व वास तुम, जीतियो, विश्व नमावै शीश। पूजत हैं हम भक्तिसों, जयवन्तो जगदीश॥
___ॐ ह्रीं अहं विश्वविजेये नमः अयं ॥४५२॥ इन्द्रादिक जिनको नमें, ते तुम शीश नवाय। विश्वजीत तुम नाम है, शरणागत सुखदाय॥
. ॐ ह्रीं अहँ विश्वजित्वराय नमः अयं ॥४५३ ॥ तीन लोक की लक्षमी, तुम चरणाम्बुज ठौर। यातें सब जग जीति के, राजत हो शिरमौर ॥
. ॐ ह्रीं अहं जगज्जेत्राय नमः अय॑ ।।४५४॥ तीन लोक कल्याण कर, कर्मशत्रु को जीति। भव्यन प्रति आनन्द कर, मेटत तिनकी भीति॥
ॐ ह्रीं अहं जगजिणवे नमः अध्यं ४५५ ॥ जग जीवन को अन्ध कर, फैलो मिथ्या घोर। धर्म मार्ग प्रगटाय कर, पहुँचायो शिव ठौर।
ॐ ह्रीं अर्ह जगन्नेत्रे नमः अयं ॥४५६॥ मोहादिक जिन जीतियो, सोई जगमय नाम। सो तुम पद पायो महा, तुम पद करूँ प्रणाम।
ॐ ह्रीं अहं जगज्जयिने नमः अयं ॥४५७॥