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श्री सिद्धचक्र विधान
शिव जाको हैं ध्यावते, पावें सन्त मुनीन्द्र। परमाराध्य कहात हो, पायो नाम अतीन्द्र ॥ ___ॐ ह्रीं अहँ परमाराध्याय नमः अर्घ्यं ॥२१८॥ पञ्चकल्याण प्रसिद्ध हैं, गर्भ आदि निर्वाण। देवन करि पूजत भये, पायो शिवसुख थान॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ पञ्चकल्याणपूजिताय नमः अर्घ्यं ॥२१९॥ देखो लोकालोक को, हस्त रेख की सार। इत्यादिक गुण तुम विर्षे, दीखै उदय अपार॥
ॐ ह्रीं अहँ दर्शनविशुद्धिगुणोदयाय नमः अर्घ्यं ॥२२०॥ छायक समकित को धरै, सौधर्मादिक इन्द्र। तुम पूजन परभावतें, अन्तिम होय जिनेन्द्र॥
ॐ ह्रीं अहँ सुरार्चिताय नमः अर्घ्यं ॥२२१॥ निर्विकल्प शुभ चिह्न है, वीतराग सो होय। सो तुम पायो सहज ही, नमूं जोर कर दोय॥
ॐ ह्रीं अहँ सुखदात्मने नमः अर्घ्यं ॥२२२ ॥ स्वर्ग आदि सुख थान के, हो परकाशन हार। दीप्त रूप बलवान हैं, तुम मारग सुखकार॥
ॐ ह्रीं अहँ दिवौजसे नमः अर्घ्यं ॥२२३॥ गर्भ कल्याणक के विर्षे, तुम माता सुखकार। षट् कुमारिका सेवती, पावें भवदधि पार॥ ___ ॐ ह्रीं अहँ सचीसेवितमातृकाय नमः अर्घ्यं ॥२२४॥
अति उत्तम तुम गर्भ है, भवदुःख जन्म निवार। रत्नराशि दिवलोकतें, वर्षे मूसलधार ॥
___ॐ ह्रीं अहँ रत्नगर्भाय नमः अयं ॥२२५ ॥