SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 234
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [२१७ चार ज्ञान नहीं जास में, शुद्ध सरूप अनूप। पर को नाहिं प्रवेश है, एकाकी शिवरूप॥ ॐ ह्रीं अहँ परमरहसे नमः अर्घ्यं ॥१३०॥ निज गुण द्रव्य पर्याय में, भिन्न-भिन्न सब रूप। एक क्षेत्र अवगाह करि, राजत हैं चिद्रूप॥ ॐ ह्रीं अहँ प्रत्यगात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३१॥ शुद्ध बुद्ध परमातमा, निज विज्ञान प्रकाश। स्व आतम के बोधतें, कियो कर्म को नाश॥ ह्रीं अहँ प्रबोधात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३२॥ कर्म मैल से लिप्त हैं, जगति आत्म दिन रैन। कर्म नाश महापद लियो, बन्दूं हूँ सुख दैन। ॐ ह्रीं अर्ह महात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३३॥ आतम को गुण ज्ञान है, यही यथारथ होय। ज्ञानानन्द ऐश्वर्यता, उदय भयो है सोय॥ ॐ ह्रीं अर्ह आत्ममहोदयाय नमः अर्घ्यं ॥१३४॥ दर्श ज्ञान सुख वीर्य को, पाय परम पद होय। - सो परमातम तुम भये, नमूं जोर कर दोय॥ ॐ ह्रीं अहँ परमात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३५ ॥ - मोहकर्म के नाशतें, शान्ति भये सुखदेन। क्षोभरहित परशान्त हो, शान्त नमूं सुखलेन॥ . ॐ ह्रीं अर्जी प्रशांतात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३६ ॥ पूरण पद तुम पाइयो, यातै परे न कोय। तुम समान नहीं और हैं, बन्दूं हूँ पद दोय॥ ॐ ह्रीं अहँ परमात्मने नमः अर्घ्यं ॥१३७ ॥ .
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy