SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 220
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री सिद्धचक्र विधान [२०३ अमृत सम निज दृष्टिसों, यथाख्यात आचार। तिन सब के स्वामी नमू, पायो शिवपद सार॥ - ॐ ह्रीं अहँ जिनेशाय नमः अर्घ्यं ॥१८॥ समोशरण आदिक विभव, तिसके तुम परधान। शुद्धातम शिवपद लहो, नमूं कर्म की हान॥ ____ॐ ह्रीं अर्ह जिननायकाय नमः अर्घ्यं ॥१९॥ सूरज सम तिहुँलोक में, मिथ्या तिमिर निवार। सहज दिखायी मोक्षमग, मैं बन्दू हित धार॥ __ॐ ह्रीं अहँ जिननेत्रे नमः अर्घ्यं ॥२०॥ जन्म-मरण दुःख जीतिकर, जिन जिन नामधराय। नमूं सिद्ध परमातमा, भवदुःख सहज नसाय॥ ... ॐ ह्रीं अहँ जिनजेत्रे नमः अर्घ्यं ॥२१॥ अचलअबाधित पदलहो, निज स्वभाव दिढ भाय। नमूं सिद्ध कर जोर कर, भाव सहित उर लाय॥ ॐ ह्रीं अहँ जिनपरिदृढ़ाय नमः अर्घ्यं ॥२२॥ . सर्व-व्यापि परमातमा, सर्व पूज्य विख्यात। श्री जिनदेव नमूं त्रिविध, सर्व पाप नशि जात॥ . ॐ ह्रीं अहँ जिनदेवाय नमः अर्घ्यं ॥२३॥ श्री जिनेश जिनराज हो, निज स्वभाव अनिवार। पर निमित्त विनशे सकल, बन्दूं शिव सुखकार॥ . . ॐ ह्रीं अहँ जिनेश्वराय नमः अर्घ्यं ॥२४॥ परम धर्म दातार हो, तीन लोक सुखदाय। तीन लोक पालक महा, मैं बन्दूं शिवराय॥ ॐ ह्रीं अहँ जिनपालकाय नमः अर्घ्यं ॥२५॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy