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श्री सिद्धचक्र विधान
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अमृत सम निज दृष्टिसों, यथाख्यात आचार। तिन सब के स्वामी नमू, पायो शिवपद सार॥
- ॐ ह्रीं अहँ जिनेशाय नमः अर्घ्यं ॥१८॥ समोशरण आदिक विभव, तिसके तुम परधान। शुद्धातम शिवपद लहो, नमूं कर्म की हान॥
____ॐ ह्रीं अर्ह जिननायकाय नमः अर्घ्यं ॥१९॥ सूरज सम तिहुँलोक में, मिथ्या तिमिर निवार। सहज दिखायी मोक्षमग, मैं बन्दू हित धार॥
__ॐ ह्रीं अहँ जिननेत्रे नमः अर्घ्यं ॥२०॥ जन्म-मरण दुःख जीतिकर, जिन जिन नामधराय। नमूं सिद्ध परमातमा, भवदुःख सहज नसाय॥ ... ॐ ह्रीं अहँ जिनजेत्रे नमः अर्घ्यं ॥२१॥
अचलअबाधित पदलहो, निज स्वभाव दिढ भाय। नमूं सिद्ध कर जोर कर, भाव सहित उर लाय॥
ॐ ह्रीं अहँ जिनपरिदृढ़ाय नमः अर्घ्यं ॥२२॥ . सर्व-व्यापि परमातमा, सर्व पूज्य विख्यात।
श्री जिनदेव नमूं त्रिविध, सर्व पाप नशि जात॥ . ॐ ह्रीं अहँ जिनदेवाय नमः अर्घ्यं ॥२३॥
श्री जिनेश जिनराज हो, निज स्वभाव अनिवार।
पर निमित्त विनशे सकल, बन्दूं शिव सुखकार॥ . . ॐ ह्रीं अहँ जिनेश्वराय नमः अर्घ्यं ॥२४॥
परम धर्म दातार हो, तीन लोक सुखदाय। तीन लोक पालक महा, मैं बन्दूं शिवराय॥
ॐ ह्रीं अहँ जिनपालकाय नमः अर्घ्यं ॥२५॥