SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 217
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २००] . श्री सिद्धचक्र विधान सर्वोत्कृष्ट सु पुण्य फल, तीर्थेश पद पायो महा। तीर्थेश पद को स्वरुचिधर, अव्यय अमर शिवफल लहा॥ या उचित ही है जु तुम पद, फलनसो पूजा करूँ॥इक.॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने १०२४ गुणसंयुक्ताय मोक्षफलप्राप्तये फलं ॥८॥ अष्टांग मूल सु विधि हरे, निज अष्ट गुण पायो सही। अष्टार्द्ध गति संसार मेटि सु अचल है अष्टम मही॥ यातें उचित ही है जु तुम पद, अर्घसों पूजा करूँ॥इक.॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने १०२४ गुणसंयुक्ताय अनर्घपदप्राप्तये अय. ॥९॥ गीता छन्द निर्मल सलिल शुभवास चन्दन धवल अक्षत युत अनी, शुभ पुष्प मधुकर नित रमें चरु प्रचुर स्वाद सुविधि घनी। वर दीपमाल उजाल धूपायन रसायन फल भले, करि अर्घ सिद्ध समूह पूजत कर्मदल सब दलमले ॥ ते कर्म प्रकृति नसाय युगपति, ज्ञान निर्मल रूप हैं, दुःख जन्म टाल अपार गुण, सूक्षम सरूप अनूप हैं। कर्माष्ट बिन त्रैलोक्य पूज्य, अदूज शिव कमलापती। मुनि ध्येय सेय अभेय चाहूँ, गेह धो हम शुभमती॥ ॐ ह्रीं श्री सिद्धपरमेष्ठिने १०२४ गुणसंयुक्ताय पूर्णाघ । १०२४ नाम गुण सहित अर्घ दोहा . इन्द्रिय विषय कषाय हैं, अन्तर शत्रु महान। तिनको जीतत जिन भये, नमूं सिद्ध भगवान॥ ॐ ह्रीं अहं जिनाय नमः अर्घ्यं ॥१॥
SR No.010544
Book TitleSiddha Chakra Mandal Vidhan Pooja
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSantlal Pandit
PublisherShailesh Dahyabhai Kapadia
Publication Year
Total Pages362
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy