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श्री सिद्धचक्र विधान
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न फिर संसार पद पाया, अपूरव बन्ध विनशाया। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकसंसारानुबन्धाय नमः अयं ॥३६८॥ आप कल्याणमय राजो, सकल जगवास दुःख त्याजो। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठककल्याणाय नमः अयं ॥३६९॥ स्वपर हितकार गुणधारी, परम कल्याण अविकारी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया॥
ॐ ह्रीं पाठककल्याणगुणाय नमः अयं ॥३७० ॥ अहित परहार पद जो है, परम कल्याण तासो है। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठककल्याणद्रव्याय नमः अर्घ्यं ॥३७१ ॥ स्वसुख द्रव्याश्रये माहीं, जहाँ कछु पर निमित्त नाहीं। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
। ॐ ह्रीं पाठककल्याणद्रव्याश्रये नमः अर्घ्यं ॥३७२ ॥ जो है सो है अमित काला, अन्यथा भाव विधि टाला। पूर्ण श्रुतंज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
___- ॐ ह्रीं पाठकतत्वगुणाय नमः अर्घ्यं ॥३७३ ॥ रहै नित चेतना माही, कहैं चिद्रूप मुनि ताही। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकचिद्रूपाय नमः अर्घ्यं ॥३७४॥ सर्वथा ज्ञान परिणामी, प्रगट है चेतना नामी। पूर्ण श्रुतज्ञान बल पाया, नमूं सत्यार्थ उवझाया।
ॐ ह्रीं पाठकचेतनागुणाय नमः अयं ॥३७५ ॥
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