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श्री सिद्धचक्र विधान
अन्तर बाहिरर भेद उधारी, दर्श विशुद्ध सदा सुखकारी। लोकशिरोमणि है शिवस्वामी, भावसहिततुमको प्रणमामी॥
ॐ ह्रीं सिद्धशुद्धसम्यक्त्वेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१०६॥ एक अणुमल कर्म लजावै, सोय निरञ्जनता नहिं पावै। लोक शिरोमणिहै शिवस्वामी, भावसहिततुमकोप्रणमामी॥ ॐ ह्रीं सिद्धनिरंजनेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१०७॥ .
अर्द्ध रोला छन्द - चारों गति को भ्रमण नाम कर थिरता पाई। निज स्वरूप में लीन, अन्य सो मोह नशाई॥
___ ॐ ह्रीं सिद्धाचलपदप्राप्ताय नमः अर्घ्यं ॥१०८॥ .. रत्नत्रय आराधि साधि, निज शिवपद पायो। . संख्या भेद उलंधि, शिवालय वास करायो॥
ॐ ह्रीं संख्यातीतसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१०९॥ असंख्यात मरजाद एक ताहू सो बीते । विजयी लक्ष्मीनाथ, महाबल सब विधि जीते।
ॐ ह्रीं असंख्यातसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥११०॥ काल आदि मर्याद अनादि, सो इह विधि जारी। भए अनन्त दिगम्बर साधु जु, शिवपद धारी॥
ॐ ह्रीं अनन्तसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥१११ ॥ पुष्करार्द्ध सागर लों, जे थल थान बखानो। देव सलाइ उपाइ, ऊर्ध्व गति गमन करानो॥
ॐ ह्रीं जलसिद्धेभ्यो नमः अर्घ्यं ॥११२॥
यो नमः
सा होते।