________________
१३० ]
श्री सिद्धचक्र विधान
केवल विभव उपाय प्रभू निजपद लियो,
चौदह अतिशय देवन करि सेवन कियो । इनहीं सो हैं पूज्य सिद्ध परमेश्वरा,
हम हूँ यह गुण पाय नमन यातैं करा ॥ ॐ ह्रीं अरहद्देवकृतचतुर्दशअतिशयाय नमः अर्घ्यं ॥ ९३ ॥ चौंतीस अतिशय जे पुराण वरणे महा,
मुक्ति समाज अनूपम श्रीगुरुने कहा । इनहीं सो हैं पूज्य सिद्ध परमेश्वरा,
हम हूँ यह गुण पाय नमन यातैं करा ॥ ॐ ह्रीं अरहचतुस्त्रिंशत अतिशयबिराजमानाय नमः अर्घ्यं ॥ ९४ ॥
डालर छन्द
लोकालोक अणु सम जानो, ज्ञानानन्त सुगुण पहिचानो । सो अरहन्त सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ॐ ह्रीं अरहज्ज्ञानानन्दगुणाय नमः अर्घ्यं ॥ ९५ ॥
समरस सुस्थिर भाव उघारा, युगपत लोकालोक निहारा । सो अरहन्त सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ॐ ह्रीं अरहद्ध्यानान्नध्येयाय नमः अर्घ्यं ॥९६॥ इक इक गुण का भाव अनन्ता, पर्ययरूप सोहै अरहन्ता । सो अरहन्त सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ॐ ह्रीं अरहद्दनन्तगुणाय नमः अर्घ्यं ॥ ९७ ॥
उत्तर गुण सब लख चौरासी, पूरण चारित भेद प्रकाशी। सो अरहन्त सिद्धपद पायो, भाव सहित हम शीश नवायो ॥ ॐ ह्रीं अरहत्तपअनन्तगुणाय नमः अर्घ्यं ॥ ९८ ॥