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श्री सिद्धचक्र विधान
पुदगलीक वरगणा जीवसों, एक क्षेत्र अवगाही हैं। नूतन कारणकरणमूलतन, कारमाणतिसनामकहैं॥भए.॥ ॐ हीं कर्माणशरीररहिताय सिद्धाधिपतये नमः अध्यं ॥६८॥
इन्द्रवज्रा छन्द जेते प्रदेश तन बीच आवै, सारे मिलैं जोड़ न छिद्र पावै। संघातनामा जिसदेह जानो, पूजूं तुम्हें सिद्ध यह कर्म भानो॥ ___ ॐ ह्रीं औदारिकसंघातरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥६९॥ वैक्रिय के जोड़ जो होत नाही, संघातनामा जिन बैन माहीं। संघातनामा जिस देह जानो, पूजूं तुम्हें सिद्ध यह कर्म भानो॥ ___ॐ ह्रीं वैक्रियकसंघातरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥७० ॥ ऐसे प्रकारा तन में अहारा, संघी मिलाया करचेत सारा। संघातनामा जिसदेह जानो, पूजूं तुम्हें सिद्ध यह कर्मभानो॥ ____ ॐ ह्रीं आहारकसंघातरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अयं ॥७१ ॥ तेजस के अंग उपंग सारे, संघी मिलाया तिस मांहि धारे। संघातनामा जिस देह जानो, पूजूं तुम्हें सिद्ध यह कर्म भानो॥ ____ॐ ह्रीं तैजससंघातरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥७२॥ ज्ञानादिआवर्णजोकर्मकाया, ताको मिलाया श्रुतमाहिंगाया। संघातनामा जिसदेह जानो, पूनँ तुम्हें सिद्ध यह कर्म भानो॥ ___ ॐ ह्रीं कार्माणसंघातरहिताय सिद्धाधिपतये नमः अर्घ्यं ॥७३॥
. चौबोला छन्द .. . पुद्गलीक वर्गणा जोग तैं, जब जित करत आहारा। प्रणवावे तिनको एकत्र करि, बन्ध उदय अनुसारा॥