SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (सिद्ध चालक हीं मंडल विधान - EO ७४ माधार SHAYARI नहिं अभावमय सिद्धि इष्ट है, नहिं निजगुणविनाशवाली, सत् का कभी नाश नहिं होता, रहता गुणी न गुण खाली । जिनकी ऐसी सिद्धि न उनका, तप विधान कुछ बनता है, आत्मनाश निजगुणविनाशका, कौन यत्न बुध करता है। (४) अस्तु: अनादिवद्ध आत्मा है, स्वकृत-कर्म-फलका भोगी, कर्मवन्ध-फलभोग-नाशसे, होता मुक्ति-रमा-योगी। ज्ञाता, द्रष्टा, निजतनु-परिमित, संकोचेतर-धर्मा है, स्वगुण-युक्त रहता है, हरदम धौव्योत्पत्ति-व्ययात्मा है । । -- इस सिद्धान्त-मान्यताके विन साध्य-सिद्धि नहिं घटती हैस्वात्मरूप की लब्धि न होती, नहिं व्रत-चर्या बनती है। बन्ध-मोक्ष-फलकी कथनी सब कथनमात्र रह जाती है, अन्त न आता भव-भ्रमण का, सत्य-शान्ति नहिं मिलती है। --. W
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy