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________________ पर आ वडलान) पन्न ___ -12- ---- AISENA है, प्रकाशोंके निवासस्थान, वर्णनरहित, विशिष्ट स्वरूपके धारक, सदा दर्शनमय, ध्येयरूप, संसाररहित सिद्ध-. समहका मै सदा स्तवन करता हूँ॥ ६॥ मुनियोंके लिये भी अगम्य, समीचीन उत्कृष्ट बोधरूप, कर दिया ! है अहंकार क्रोव और चिन्ताका निरोध जिन्होने, अपार, जरा मृत्युसे रहित, ससार चक्रसे दूर सिद्ध Patra समूहका मैं सदा स्तवन करता हूँ॥ ७ ॥ अनन्त, विश्रामरूप, विकारोंसे रहित, छोड़ दिया है स्फुरायमान कामिनियोंका रग राग जिनने, इच्छा और अपघातसे रहित, उत्कृष्ट, ससाररहित सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ ॥ ८ ॥ अत्यन्त दुष्ट अष्ट कर्मरूपी इन्धनके लिये अग्निसमान, सिद्ध कर लिया है गुणाष्टकको जिनने, चिद्गुणके बारक, चेतनाका ही है विलास जिनमे, उदासीन- वीतराग, ईशान-परमेश्वर, परमात्मा, संसाररहित सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ॥९॥ जन्मरहित, शास्वत, जरा रहित, देवोके | भी देव, लोभरहित, की है अनेक मूपालोने सेवा जिनकी, विकारोके समूहको जिन्होने आहुतिका विषय बना दिया है, ससारके पाशसे रहित, विचक्र सिद्धचक्रका मै सदा स्तवन करता हूँ ॥१०॥.. ... ॥११॥ समस्त कामदेवके भेदोसे रहित, दोपोके समूहका निरोध करनेवाले, रसरहित अवस्थासे पूर्ण, कल्याणकारी, सारभूत, अजर-कभी जीर्ण न होने वाले, देवोके द्वारा बन्ध, पचपरमेष्ठियोंमे प्रथम देव, मुनिसमूहके द्वारा सेव्य, समीचीन देवरूप सिद्धचक्रका पद्मनन्दी आचार्य स्मरण करते है॥ १२॥ इस तरह कर्मरहित, ससारकी वाधाको दूर करनेवाले, नोकर्म द्रव्यकर्म और अशुभ भावकर्मसे रहित, नवीन अवस्थाको प्राप्त सिद्ध परमेष्ठीका जो न्यान करता है वह समस्त अशुभका परित्याग करके और सम्पूर्ण माडलिक गजाओं तथा देवोके स्वामित्वको भले प्रकार भोग करके अमृतरूप शिवमय-कल्याणमय फलको प्राप्त हुआ करता है ॥१३॥ PALA PREVERY LS THAN
SR No.010543
Book TitleSiddhachakra Mandal Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages191
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size15 MB
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