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- (सिध्द अकाही अंडल शिशान -
पंचम जयमालाका अर्थ
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जो ज्ञानावरणादि दोषोंका बलपूर्वक और अच्छी तरहसे निर्मूलन कर ससाररूपी नदीके शोषण करने वाले सम्यग्दर्शनादिकको प्राप्त हो चुके है, चक्रवर्तिप्रमुख अथवा सुरेन्द्रोके द्वारा पूजित है चरण जिनके ऐसे सिद्ध भगवान् सिद्धस्तोत्रके द्वारा प्रकट हो गया है ज्ञानरूप तेज जिनका ऐसे भक्तात्माओंको मोक्षलक्ष्मी प्रदान करे ॥१॥
चिदानन्दस्वरूप, सुखके लीलास्थल, अखण्ड है स्वभाव जिनका, कर्मोके विजेता, सिद्धात्माओके समूहरूप, विपादरहित, वीतराग, चक्र-पारवण्ड अथवा सांसारिक परिवर्तनसे दूर सिद्धसमूहका मैं सदा अच्छी तरह स्तवन करता हूँ। २ । विशुद्ध है उदय जिनका, जो ससारके पारको प्राप्त हो चुके है, सम्यग्ज्ञानके निधान, उत्कृष्ट, निर्विकार, मायारहित, विभा - अलौकिक प्रभाको प्राप्त, उत्कृष्ट नेतृत्वके धारक संसाररहित सिद्धसमूहका मै स्तवन करता हूँ ॥ ३॥
आशय-सकल्पविकल्पसे रहित मर्यके समान ज्ञान ही है नेत्र जिनका, मोहरहित, समतारूपी महान्अमृत ही है शरीर जिनका, अप्रमाण प्रभावके धारक, दर्परहित, अशरीर सिद्धसमूहका मै सदा स्तवन करता हूँ। ॥ ४॥ एकान्तरूप, मनोज्ञ, कलकरहित, विद्वानो या कवियोंके हृदयमे स्थित, भलेप्रकार सेव्य, विपाक अवस्थाको प्राप्त, शकारहित, अपार, काल-काय-काम और ससारचक्रसे रहित सिद्वसमूहका मै सदा अच्छी तरह स्तवन करता हूँ। ॥ ५॥ तीन लोकमे सर्वोत्कृष्ट है प्रभा जिनकी, ज्ञानकी अपेक्षा जो विश्वरूप
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