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= (शिष्य आ
ही जोडल शिक्षान) =
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निरीहापघात विहीनं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ७॥ प्रदुष्टाष्टकर्मेन्धनेभ्यो हुताशम् ,
सुसिद्धाष्टकं चिद्गुणं चिद्विलासम् । उदासीनमीशानमीशं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥ ८॥ अजं शास्वतं निर्जरं देवदेवम् ,
विलोभं कृतानेकभूपालसेवम् । वषट्कृतं वा विपाशं विचकम् ,
सदा तोटवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥९॥
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प्रयाति क्षयं कर्म यद्ध्यानयोगात्,
___ समत्वं गतानां मुनीनां क्षणेन । प्रसिद्धं विशुद्ध तथानन्दरूपम् ।
सदा तोटवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ।। १०॥
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