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दिए जाङ्ग
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अथ जयमाला
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चिदानन्दमानन्दलीलानिवासम,
अखण्डस्वभावं जिनं सिद्धराशिम् । विषादोज्झितं वीतरागं विचक्रम्,
सदा तोष्टचीति स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥१॥ विशुद्धोदयं प्राप्तसंसारपारम्,
सुसंविनिधानं परं निर्विकारम् । विमायं विभायं विनायं विचक्रम् ,
सदा तोष्टवीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥२॥ विमुक्ताशयादित्यविज्ञाननेत्रम्,
विमोहं समस्फारपीयूपगात्रम् ।। अमेयप्रभाव विदर्प विचक्रम् ,
सदा तोष्टचीमि स्फुटं सिद्धचक्रम् ॥३॥
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