________________
(सिद्ध चक्रहीं मंडल विधान) -
.
vd..
अथ जयमालाविराग सनातन शांत निरंश, निरामय निर्भय निर्मल हंस । सुधाम विवोधनिधान विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥१॥ विदरितसंसृतिभाव निरंग, शमामृतपूरित देव विसंग । अबंध कपायविहीन विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ २॥ निवारितदुष्कृतकमविपाश, सदामलकेवलकेलिनिवास । भवोदधिपारग शांत विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥३॥ अनंतसुखामृतसागर धीर, कलंकरजोभरभूरिसमीर । विरवण्डितकाम विराम विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ४॥ विकारविवर्जित तर्जितशोक, विबोधसुनेत्रविलोकितलोक । . विहार विराव विरंग विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ५ ॥ रजोमलखेदविमुक्त विगात्र, निरंतरनित्यसुखामृतपात्र । सुदर्शनराजित नाथ विमोह, प्रसीद विशुद्ध सुसिद्धसमूह ॥ ६॥
S
MANIA
RAN