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(शिक्षु आ
ही दुल विधान) =
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अथ प्रथमपरिधौ कर्णिकाकारयंत्रैः सहाष्टकोष्टकपूजा।
निरस्तकर्मसम्बन्धं सूक्ष्मं नित्यं निरामयम् । वन्देहं परमात्मानममूर्तमनुपद्रवम् ॥ १॥ सकलामरेन्द्रसेव्यं ज्ञानामृतपानतृप्तनिजभावम् ।
संस्थापयामि सिदं कर्मानलदावमेघौघम् ॥२॥ ॐ हीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्रावतरावतर सबौपट ॐ हीं णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र तिष्ठ २ ठ ठ. ॐ ही णमो सिद्धाण सिद्धपरमेष्ठिन् अत्र मम सन्निहितो भव २ वषट्
हलां चयो विना यैस्तु सुप्रसिद्वोऽर्धमातृकः ।
तैः स्वरैः महितं पूर्वदिश्यनाहतमर्चये ॥१॥ ॐ हीं अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋतृ तृ प.ऐ ओ श्री अ . अनाहतविद्यायै नम: पूर्वदिशि अर्घ निर्वपामीति स्वाहाः
आग्नेय्यां कादिसद्वेर्णरुपेतानाहतं यजे।
सुगन्धैः सुभगैरुद्धैर्जलगंधाक्षतादिभिः॥२॥ १-मूल्य प्रति में “सुभगै" की जगह सर्वत्र “सुरभै" तथा "उद्वैः' की जगह "उधै" पाठ है। एक जगह "द्रव्यै;" ऐसा संशोधित पाठ भी है। "सुभगै" की जगह "मुरसे" भीटीक मालुम होता है।
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PASANA
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