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यद्यपि सशोधन करने में हमने पूरी सावधानी रक्खी है फिर भी कहीं ₹ हमने सदेहवश जैसा का तैसा भी पाठ छोड़ दिया है। इसके सिवाय हमारे अज्ञान, प्रमाद, अथवा दृष्टिदोप से भी जो वह अशुद्धिया रहगई हों या गलतियां होगई हों उनके लिये पाठकों से हम पुनः क्षमा मागते है और विद्वानों से नम्रतापूर्वक उनका संशोधन करलेने की प्रार्थना भी करते है।
प्रकृत पाठ के सम्पादन में ऊपर लिखे अनुसार बम्बई के श्री. १०५ ऐ. प. दि. जैन सरस्वती भान के सिवाय इन्दौर के उदासीनाश्रम के अमर ग्रन्थालय तथा श्री सेठ माणिकचन्द मगनीरामजी को गोट के श्री १००८ शान्तिनाथ चैत्यालय दीतवारा के ग्रन्थमडार से भी हमको यथावश्यक ग्रन्थसामग्री प्राप्त हुई है. अतएव हम उन प्रथभंडारों और उनके अधिकारियों के अत्यन्त आभारी है।
पूजन का कुछ भाग बम्बई में भी छपा है वहांपर प्रेस की सुव्यवस्था करानेमें श्रीयुत पं. नाथूरामजी प्रेमी से हमको बहुत सहायता प्राप्त हुई तथा श्रीयुत पं. रामप्रसादजी शास्त्री से हमको पूजन के कुछ अन्तिम भाग के संशोधन आदि के लिये सहयोग प्राप्त हुआ है क्योंकि हमारे - बम्बई से इन्दौर चले आने पर उस भाग का संशोधन आपने ही किया है, अतएव दोनों सज्जनों के भी हम अत्यन्त श्राभारी हैं। - ------ - - - - - -
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