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________________ नारी का बन्ध-विमोचन दोहराई । वसुमती फिर मौन रही। उसने तीसरी बार फिर पूछा, तब वसुमती ने इतना ही कहा, 'मैं आपकी दासी हूं। इससे अधिक मेरा परिचय कुछ नहीं है।' उसकी आंखों से अश्रुधारा वह चली। श्रेष्ठी का दिल पसीज गया । उसने वात का सिलसिला तोड़ दिया। श्रेष्ठी धनावह की पत्नी का नाम था मूला। वह वसुमती को देख आश्चर्य में पड़ गई। धनावह ने उससे कहा, 'तुम्हारे लिए पुत्री लाया हूं। इसका ध्यान रखना।' वसुमती के स्वभाव और व्यवहार ने समूचे घर को मोहित कर लिया। उसने धनावह के घर में दासी के रूप में पैर रखा था, पर अपनी विशिष्टता के कारण वह पुत्री बन गई। शील की सुगंध और शीतलता ने उसे वसुमती से चंदना बना दिया। चंदना का दिन-दिन निखरता सौन्दर्य अन्य युवतियों के मन में ईर्ष्या भरने लगा। एक दिन मूला के मन में आशंका के बादल उमड़ आए। वह सोचने लगी, 'श्रेष्ठी चंदना के बारे में सही बात नहीं बता रहे हैं। वे इसके प्रति बहुत आकृष्ट हैं। कहीं धोखा न हो जाए ? इसके साथ विवाह न कर लें? यदि कर लिया तो फिर मेरी क्या गति होगी?'---इन अर्थशून्य विकल्पों ने मूला को विक्षिप्त-जैसा बना दिया। जिसे अपने-आप पर भरोसा नहीं होता, उसके लिए पग-पग पर विक्षेप की परिस्थिति निर्मित हो जाती है। मनुष्य अपनी शक्ति के सहारे जीना क्यों पसन्द नहीं करता ? उसे अपनी ओर निहारना क्यों नहीं अच्छा लगता? दूसरों की ओर निहारकर क्या वह अपनी शक्ति को कुंठा की कारा में कैद नहीं कर देता ? पर यह मानवीय दुर्वलता है। इस दुर्वलता से उबारने के लिए ही भगवान महावीर ने आत्म-दीप की लौ जलाई थी। ___ मध्याह्न का सूर्य पूरी तीव्रता से तप रहा था। धरती का हर कोना प्रकाश की आभा से चमक उठा था। हर मनुष्य का शरीर प्रत्वेद की बूंदों से अभिपिक्त हो रहा था । उस समय धनावह बाजार से छुट्टी पाकर घर आया। नौकर सव चले गए थे। पैर धोने के लिए जल लाने वाला भी कोई नहीं था। पूरा घर ताली था। चंदना ने श्रेष्ठी को देखा। वह पानी लेकर पैर धुलाने नाई। श्रेष्ठी ने उसे रोका । पर वह आग्रहपूर्वक श्रेष्ठी के पैर धोने लगी। उस समय उसकी केश-राणि विकीर्ण होकर भूमि को छूने लगी। उसे कीचड़ से बचाने के लिए धेठी ने उसे अपने लीलामाप्ठ से उठा लिया और व्यवस्थित कर दिया। मूला वातायन में बैठी-बैठी यह सब देख रही थी। श्रेष्ठी के मन में कोई पाप नहीं था और चंदना का मन भी निष्पाप था। पाप भराधा मूला मन में । वह जाग उठा। धनापह विश्राम कर फिर बाजार में चला गया। मूला घर के भीतर आई।
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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