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श्रमण महावीर
ले रहा था। बेचारे बंदी को बंदी बनाने का यह अभिनव प्रयोग चल रहा था।
८. इस दुनिया में जो घटित होता है, वह सब सकारण ही नहीं होता। कुछकुछ निष्कारण भी होता है। हिरण घास खाकर जीता है, फिर भी शिकारी उसके पीछे पड़े हैं। मछली पानी में तृप्त है, फिर भी मच्छीगर उसे जीने नहीं देते। सज्जन अपने आप में संतुष्ट है, फिर भी पिशुन उसे आराम की नींद नहीं लेने
देते।
भगवान् तोसली गांव के उद्यान में ध्यान कर खड़े थे। संगम देव उनके कार्य में विघ्न उत्पन्न कर रहा था। वह साधु का वेश वना गांव में गया और सेंध लगाने लगा। लोग उसे पकड़कर पीटने लगे। तब वह बोला, 'आप मुझे क्यों पीटते
'सेंध तुम लगा रहे हो, तब किसी दूसरे को क्यों पीटें ?'
'मैं अपनी इच्छा से चोरी करने नहीं आया हूं। मेरे गुरु ने मुझे भेजा है, इसलिए आया हूं।'
'कहां हैं तुम्हारे गुरु ?' 'चलिए, अभी बताए देता हूं।'
संगम आगे हो गया। गांव के लोग उसके पीछे-पीछे चलने लगे। वे सर्व भगवान् के पास पहुंचे। संगम ने कहा, 'ये हैं मेरे गुरु।' लोगों ने भगवान से पूछा, 'क्या तुम चोर हो ?' भगवान् मौन रहे। लोगों ने फिर पूछा, 'क्या तुमने इसे चोरी करने के लिए भेजा था ?' भगवान् अब भी मौन थे। लोगों ने सोचा, कोई उत्तर नहीं मिल रहा है, अवश्य ही इसमें कोई रहस्य छिपा हुआ है । वे भगवान् को बांधकर गांव में ले जाने लगे।
महाभूतिल उस युग का प्रसिद्ध ऐन्द्र जालिक था। वह उस रास्ते से जा रहा था। उसने देखा, 'बन्धन मुक्ति को अभिभूत करने का प्रयत्न कर रहा है।' उसने दूर से ही ग्रामवासियों को ललकारा-'मूर्यो ! यह क्या कर रहे हो ?' उन्होंने देखा~यह महाभूतिल बोल रहा है। उनके पैर ठिठक गए। वे कुछ सिर झुकाकर बोले, 'महाराज ! यह चोर है। इसे पकड़कर गांव में ले जा रहे हैं।' इतने में महाभूतिल नज़दीक आ गया। वह भगवान् के पैरों में लुढ़क गया। ___ग्रामवासी आश्चर्य में डूब गए। यह क्या हो रहा है ? हम भूल रहे हैं या महाभूतिल ? क्या यह चोर नहीं ? वे परस्पर फुसफुसाने लगे। महाभूतिल ने दृढ़ स्वर में कहा, 'यह चोर नहीं है । महाराज सिद्धार्थ का पुत्र राजकुमार महावीर है । जिस व्यक्ति ने राज्य-संपदा को त्यागा है, वह तुम्हारे घरों में चोरी करेगा? मुझे लगता है कि तुम लोग चिंतन के क्षेत्र में बिलकुल दरिद्र हो।'
१. साधना का ग्यारहवां वर्प ।