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अनुकूल उपसर्गों के अंचल में
जल कमल को उत्पन्न करता है। उसके परिमल को फैलाता है पवन । उसकी अनुभूति करता है प्राण । सब अपना-अपना काम करते हैं, तब एक काम निष्पन्न होता है। वह है-~-परिमल के अस्तित्व का बोध ।
१.भगवान् दीक्षित होने को प्रस्तुत हुए। परिवार के लोगों ने उनका अभिषेक किया । फिर उनके शरीर को सुवासित किया-किसी ने दिव्य गोशीर्षचंदन से, किसी ने सुगंधि चूर्ण से और किसी ने पटवास से। भगवान् का शरीर सुगंधमय हो गया।
मधुकरों को परिमल के अस्तित्व का बोध हुआ। वे पुष्पित वनराजि और कमलकोशों को छोड़ भगवान् के शरीर पर मंडराने लगे । वे चारों ओर दे रहे थे परिक्रमा और कर रहे थे गुंजारव । उपवन का शान्त और नीरव वातावरण ध्वनि से तरंगित हो गया। मधुकर भगवान् के शरीर पर बैठे। उन्हें पराग-रस नहीं मिला। वे उड़कर चले गए। परिमल से आकृष्ट हो फिर आए और पराग न मिलने पर फिर उड़ गए । इस परिपाटी से संरुष्ट हो, वे भगवान् के शरीर को काटने लगे।
२. भगवान् कर्मारग्राम में गए। वहां कुछ युवक सुगंधि से आसक्त हो भगवान् के पास आए। उन्होंने अवसर देख भगवान् से प्रार्थना की, 'राजकुमार ! आपने जिस गंधचूर्ण का प्रयोग किया है, उसके निर्माण की युक्ति हमें भी बताइए।' भगवान् ने इसका उत्तर नहीं दिया। वे क्रुद्ध हो गालियां देने लग गए।
३. भगवान् का शरीर सुगठित, सुडौल और सुन्दर था। उनके धुंघराले बाल
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१. आचारांगचूर्णि, पृ० २६६; आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २६८, २६६ । २. आचारांगचूणि, १० ३००; आवश्यकचूर्णि, पूर्वभाग, पृ० २६६।