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________________ ध्यान की व्यूह-रचना ० भद्रप्रतिमा-दो उपवास - एक बार। ० महाभद्रप्रतिमा-चार उपवास - एक वार । ० सर्वतोभद्रप्रतिमा-दस उपवास - एक बार। भगवान् ने साधनाकाल में सिर्फ तीन सौ पचास दिन भोजन किया, निरन्तर भोजन कभी नहीं किया। उपवासकाल में जल कभी नहीं पिया। उनकी कोई भी तपस्या दो उपवास से कम नहीं थी।' ___'भगवान् की साधना के दो अंग हैं-उपवास और ध्यान । हमने भगवान् की उस मूर्ति का निर्माण किया है, जिसने उपवास किए थे। जिसने ध्यान किया था, उस मूर्ति के निर्माण में हमने उपेक्षा बरती है। इसीलिए जनता के मन में भगवान् का दीर्घ-तपस्वी रूप अंकित है। उनकी ध्यान-समाधि से वह परिचित नहीं है।' 'भगवान् इतने ध्यान-लीन थे, फिर लम्बे उपवास किसलिए किए ?' 'उन दिनों दो धाराएं चल रही थीं। कुछ दार्शनिक शरीर और चैतन्य में अभेद प्रस्थापित कर रहे थे। कुछ दार्शनिक उनमें भेद की प्रस्थापना कर रहे थे। महावीर भेद के सिद्धान्त को स्वीकार कर उसके प्रयोग में लगे हुए थे। वे यह सिद्ध करना चाहते थे कि स्थूल शरीर की तुलना में सूक्ष्म शरीर और सूक्ष्म शरीर की तुलना में मन और मन की तुलना में आत्मा की शक्ति असीम है। उनकी लम्बी तपस्या उस प्रयोग की एक धारा थी। यह माना जाता है कि मनुष्य पर्याप्त भोजन किए विना, जल पिए बिना बहुत नहीं जी सकता और श्वास लिये बिना तो जी ही नहीं सकता। किन्तु भगवान् ने छह मास तक भोजन और जल को छोड़कर यह प्रमाणित कर दिया कि आत्मा का सान्निध्य प्राप्त होने पर स्थूल शरीर की अपेक्षाएं बहुत कम हो जाती हैं । जीवन में नींद, भूख, प्यास और श्वास का स्थान गौण हो जाता है। 'तो मैं यह समझू कि भगवान् को भूख लगनी बन्द हो गई ?' 'यह सर्वथा गलत है । वे रुग्ण नहीं थे, तब यह कैसे समझा जाए कि उन्हें भूख लगनी बन्द हो गई।' 'तो फिर यह समझू कि भगवान् भूख का दमन करते रहे, उसे सहते रहे ?' 'यह भी सही समझ नहीं है।' 'सही समझ फिर क्या है ?' 'भगवान् आत्मा के ध्यान में इतने तन्मय हो जाते थे कि उनकी भूख-प्यास की अनुभूति क्षीण हो जाती थी।' "क्या ऐसा हो सकता है ?' १. आवश्यकनियुक्ति दीपिका, पन १०७, १०८
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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