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क्या मैं चक्रवर्ती नहीं हूं ?
पुष्य उस समय का प्रसिद्ध नामुहिक धा। उनका ज्ञान अनूपया। दूर-दूर ग. लोग उस पास अपना भविष्य जानने के लिए लाते थे। उसे अपनी सफलता पर गांधा । एक दिन वह घूमता-पूमता गंगा के तट पर पहुंचा। उसने यहां मलान किस गरणाचा देगे । वह आश्चर्य ने सागर में दर गया।
किमोनरण?" उन मन-ही-मनाने दो-चार बार दो गया-'जिगर कारण-पि , पर कोई माधारण आदमी नहीं है, यह कोई माधारण गमा न या , पता होना चाहिए। प्रवर्ती भोर अकेला, यह पंग ? चकरी जोरपदयात्रीपर? प्रदती जार, नगपर, पायगी मप्तता
RI ?' वा मन्दर के नागर में द गया। चरण-निता पाम जाकर बैठा मानीदमयता और गधमना न
मनी --उसे अपने पर पगेमा हो गया। उसके मन में विनर
PAafनश्चित ही महाधिक धनी होगा कि परियामा को मामिलामाटा। मैं मानो जलारामा दमा और
पर गगा कि मेरेर मुसा मान्द पापा, जिलानी प्रमाणाबार पानी पर गरीबी उतरी।।
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का नाम-
चिनी १४३१ मामले पर परोसन १. जी
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