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पुरुषार्थ का प्रदीप
एक विद्यार्थी बहुत प्रतिभाशाली है। उसने पूछा, 'मनुष्य के जीवन का उद्देश्य क्या है ?' ___मैंने कहा-'उद्देश्य जीवन के साथ नहीं आता। आदमी समझदार होने के बाद अपने जीवन का उद्देश्य निश्चित करता है । भिन्न-भिन्न रुचि के लोग हैं और उनके भिन्न-भिन्न उद्देश्य हैं।'
विद्यार्थी बोला, 'इन सामयिक उद्देश्यों के बारे में मुझे जिज्ञासा नहीं है। मेरी जिज्ञासा उस उद्देश्य के बारे में है जो अंतिम है, स्थायी है और सबके लिए समान है।
क्षण भर अन्तर् के आलोक में पहुंचने के पश्चात् मैंने कहा, 'वह उद्देश्य है स्वतंत्रता।' ___यह उत्तर मेरे अन्तस् का उत्तर था। उसने तत्काल इसे स्वीकार कर लिया। फिर भी मुझे अपने उत्तर की पुष्टि किए बिना संतोष कैसे हो सकता था? मैं बोला, 'देखा, तोता पिंजड़े से मुक्त होकर मुक्त आकाश में विहरण करना चाहता है। शेर को क्या पिंजड़ा पसन्द है ?हाथी को जंगल जितना पसन्द है, उतना प्रासाद पसन्द नहीं । ये सब स्वतंत्रता की अदम्य और शाश्वत ज्योति के ही स्फुलिंग हैं।' महर्षि मनु ने ठीक कहा है, 'परतंत्रता में जो कुछ घटित होता है, वह सब दुःख है । स्वतंत्रता में जो कुछ घटित होता है, वह सब सुख है।'
स्वतंत्रता की शाश्वत ज्योति पर पड़ी हुई भस्मराशि को दूर करने के लिए महावीर अब आगे बढ़े। उन्होंने अपने साथ आए हुए सब लोगों को विसर्जित कर दिया।
इस प्रसंग में मुझे राम के वनवास-गमन की घटना की स्मृति हो रही है। दोनों घटनाओं में पूर्ण सदृशता नहीं है, फिर भी अभिन्नता के अंश पर्याप्त हैं । राम