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श्रंमण महावीर स्वतंत्रता का तीसरा चरण था-वैभव का विसर्जन । वैभव व्यक्ति को दूसरों से विभक्त करता है । स्वतंत्रता का अन्वेषी उसका विसर्जन कर मानव-जाति के साथ एकता स्थापित कर लेता है।
प्रवुद्ध मेरा अभिन्न मित्र है। वह स्वतंत्रता के लिए विसर्जन को प्राथमिकता देने के पक्ष में नहीं है। उसका कहना है कि भीतरी वन्धन के टूटने पर बाहरी बंधन हो या न हो, कोई अन्तर नहीं आता और भीतरी बंधन के अस्तित्व में वाहरी वंधन हो या न हो, कोई अन्तर नहीं आता । उसने अपने पक्ष की पुष्टि में कहा'महावीर ने पहले भीतर की ग्रंथियों को खोला था, फिर तुम बाहरी ग्रंथियों के खुलने को प्राथमिकता क्यों देते हो? उसने अपनी स्थापना के समर्थन में आचारांग सूत्र की एक पहेली भी प्रस्तुत कर दी-'स्वतंत्रता का अनुभव गांव में भी नहीं होता, जंगल में भी नहीं होता। वह गांव में भी हो सकता है, जंगल में भी हो सकता
उसके लम्बे प्रवचन को विराम देते हुए मैंने पूछा, 'मित्र ! पहले यह तो बताओ वह भीतरी बंधन क्या है ?'
'अहंकार और ममकार।
'महावीर ने पहले इनका विसर्जन किया, फिर घर का । तुम्हारे कहने का अभिप्राय यही है न?'
'जी हां।'
'अहंकार और ममकार का विसर्जन एक मानसिक घटना है। स्वतंत्रता की खोज में उसकी प्राथमिकता है। मैं इससे असहमत नहीं हूं। किन्तु मेरे मित्र ! बाह्य जगत् के साथ तादात्म्य स्थापित करने के लिए क्या बाहरी सीमाओं का विसर्जन अनिवार्य नहीं है ? मानसिक जगत् में घटित होने वाली घटना को मैं कैसे देख सकता हूं? उस घटना से मेरा सीधा सम्पर्क हो जाता है जो बाह्य जगत् में घटित होती है। मैंने महावीर के विसर्जन को प्राथमिकता इसलिए दी है कि वह वाह्य जगत् में घटित होने वाली घटना है। उसने समूचे लोक को आश्वस्त कर दिया कि महावीर स्वतंत्रता की खोज के लिए घर से निकल पड़े हैं। उनका अभिनिष्क्रमण समूची मानव-जाति के लिए प्रकाश-स्तम्भ होगा।'
'क्या गृहवासी मनुष्य स्वतंत्रता का अनुभव नहीं कर सकता ?'
'मैं यह कब कहता हूं कि नहीं कर सकता। मैं यह कहना चाहता हूं कि जो व्यक्ति स्वतंत्रता की लौ को अखंड रखना चाहता है, उसे एक घर का विसर्जन करना ही होगा। वह विसर्जन, मेरी दृष्टि में, सब घरों को अपना घर बना लेने की प्रक्रिया है।'
'तुम महावीर को एकांगिता के आदर्श में क्यों प्रतिबिम्बित कर रहे हो, देव!' 'मैं इस आरोप को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हूं। मैंने एक क्षण के