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श्रमण महावीर
काल का चक्र अविराम गति से घूमता है। आकांक्षा की पूर्ति के क्षणों में हमें . लगता है, वह जल्दी घूम गया। उसकी पूर्ति की प्रतीक्षा के क्षणों में हमें लगता है, वह कहीं रुक गया । महावीर को दो वर्ष का काल बहुत लंबा लगा। आखिर लक्ष्यपूर्ति की घड़ी आ गयी। स्वतंत्रता सेनानी के पैर परतंत्रता के निदान की खोज में आगे बढ़ गए।
१. आवश्यकचूणि, पूर्वभाग, पृ०२४६ ।।