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________________ जीवन का विहंगावलोकन २८७ ५६. वंभचेरं चरियव्वं ।' -ब्रह्मचर्य का आचरण करो। ५७. णिव्वाणं संधए। --निर्वाण का संधान करो। ५८. अदिण्णं पि य णातिए।' -अदत्त मत लो-चोरी मत करो। ५६. अप्पणो गिद्धिमुद्धरे। -आसक्ति को छोड़ो-संग्रह मत करो। ६०. साहरे हत्थपाए य, मणं सव्विंदियाणि य । __-हाथ, पैर, मन और इन्द्रियों का अपने आप में समाहार करो। १२. भगवान् का निर्वाण ६१. अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। सिद्धि गति साहमणंत पत्ते, णाणेण सीलेण य दंसणेण। -भगवान् ज्ञान, दर्शन और शील के द्वारा अशेप कर्मों का विशोधन कर मिद्धि को प्राप्त हो गए। इस लोक में उससे परम कुछ नहीं है । १. पहावागरणाइं । २. सयगडो : १६३६ ३. मूपगडो : १।८१२० ४. सयगटो:१1८।१३ ५. सूपगडो : १८१७ ६. सूचगहो : १।६।१७
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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