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जीवन का विहंगावलोकन
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५६. वंभचेरं चरियव्वं ।'
-ब्रह्मचर्य का आचरण करो।
५७. णिव्वाणं संधए।
--निर्वाण का संधान करो।
५८. अदिण्णं पि य णातिए।'
-अदत्त मत लो-चोरी मत करो।
५६. अप्पणो गिद्धिमुद्धरे।
-आसक्ति को छोड़ो-संग्रह मत करो।
६०. साहरे हत्थपाए य, मणं सव्विंदियाणि य ।
__-हाथ, पैर, मन और इन्द्रियों का अपने आप में समाहार करो। १२. भगवान् का निर्वाण ६१. अणुत्तरग्गं परमं महेसी, असेसकम्मं स विसोहइत्ता। सिद्धि गति साहमणंत पत्ते, णाणेण सीलेण य दंसणेण।
-भगवान् ज्ञान, दर्शन और शील के द्वारा अशेप कर्मों का विशोधन कर मिद्धि को प्राप्त हो गए। इस लोक में उससे परम कुछ नहीं है ।
१. पहावागरणाइं । २. सयगडो : १६३६ ३. मूपगडो : १।८१२० ४. सयगटो:१1८।१३ ५. सूपगडो : १८१७ ६. सूचगहो : १।६।१७