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________________ २५० श्रमणे महावीर आर्द्रकुमार को पूर्वजन्म की स्मृति हो गई। आर्द्रकुमार अवकाश देखकर अपने देश से निकल गया। वह वासना के तूफानों और विचारों के जंगलों को पार कर भगवान् की यात्रा का सहभागी हो गया।' ३. वारिषेण का पिता था श्रेणिक और माता थी चिल्लणा। वह बहुत धार्मिक था। चतुर्दशी का दिन आया। उसने श्मशान में जाकर ध्यान शुरू किया। राजगृह में विद्युत् नाम का चोर रहता था। वह नगरवधू सुन्दरी से प्रेम करता था । एक दिन सुन्दरी ने कहा~-'क्या तुम मुझसे सच्चा प्रेम करते हो?' 'तुम्हें यह सन्देह क्यों हुआ ?' 'काल का चक्र चलते-चलते सन्देह की धूली में फंस जाता है। इस नियति को मैं कैसे टाल सकती हूं ?' 'तो विश्वास का प्रामाण्य चाहती हो ?' 'इस निसर्ग को तुम कैसे टाल सकोगे ?' 'मैं तैयार हूं प्रामाण्य देने को। कहो, तुम क्या चाहती हो ?' 'महारानी चिल्लणा का हार।' 'क्या सोच-समझकर कह रही हो ?' 'हां।' 'क्या यह सम्भव है ?' 'प्राणों की आहुति दिए बिना क्या प्रेम पाना सम्भव है ?' 'तो क्या मुझे शलभ होना है ?' 'इसका निर्णय देनेवाली में कौन ?' 'मैं निर्णय कर चुका हूं। चिल्लणा का हार शीघ्र ही तुम्हारे गले में विराजित होगा।' विद्यत कल्पनाशील चोर था। उसकी सूझ-बुझ अभयकुमार जैसे प्रतिभाशाली महामात्य को भुलावे में डाल देती थी। वह विद्युत् जैसा चपल-त्वरित कार्यवादी था। वह छद्मवेश बना अन्तःपुर में पहुंचा। हार चुराकर चुपके से निकल आया। यह हार लिये जा रहा था। कोतवाल की दृष्टि उस पर पड़ गई। उसने सहज भाव पत्रा 'विद्युत् ! आज क्या छिपाए जा रहे हो ?' 'कुछ नहीं, श्रीमान् !' 'कुछ तो है ।' 'रिमने मुचना दी है आपको ?' 'तुम्हारे मारी पर ही गुचना दे रहे हैं।'
SR No.010542
Book TitleShraman Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDulahrajmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages389
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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